मंगलवार, 13 सितंबर 2011

इनसाईट स्टोरी: पीठ के दर्द का होगा इलाज

इनसाईट स्टोरी: पीठ के दर्द का होगा इलाज: वैज्ञानिकों ने अब उस जीन की पहचान कर ली है जिसके कारण निरंतर पीठ में दर्द महसूस होता है. उनका कहना है कि अब पीठ दर्द से निजात पाने के लिए दव...

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

कृत्रिम श्वांस नली तैयार

लंदन में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम सांस की नली बना ली है जिस पर मरीज़ के स्टेम सेल का लेप चढ़ाया. 36 साल के कैंसर मरीज़ ऐंडेमरियम टेकलेसेन्बेट जो की अफ्रिका के रहने वाले हैं का सफल आपरेशन किया गया. डाक्टरों के अनुसार ऑपरेशन के बाद तेज़ी से सुधार हो रहा है. इस तरह के ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें किसी दाता या 'डोनर' की ज़रूरत नहीं है और इस बात का भी ख़तरा नहीं रहता है कि शरीर उस नए अंग को स्वीकार नहीं करेगा. सर्जनों का दावा है कि सांस की नली को कुछ दिनों में ही बनाया जा सकता है. इटली के प्रोफ़ेसर पाओलो मैकियारिनी  हैं और उन्होंने इस पूरी सर्जरी का नेतृत्व किया था. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है वे इस तकनीक का इस्तेमाल कोरिया में नौ साल के एक मरीज़ की ख़राब सांस की नली का इलाज कर पाएंगे. प्रोफ़ेसर मैकियारिनी के अनुसार अब तक उन्होंने सांस की नली के दस ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किए हैं लेकिन इन सभी मामलों में एक दाता या डोनर की ज़रूरत रही है. इस तकनीक की सबसे बड़ी और  महत्वपूर्ण खाशियत है मरीज़ की सांस की नली का समान ढांचा तैयार करना. इस स्कैन को देखकर यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने हू-ब-हू ढांचा तैयार किया. फिर शीशे से बने इस ढांचे पर मरीज़ के बोन मैरो से स्टेम सेल निकाल कर तैयार किया गया लेप लगाया गया. 
ज्ञानपुंज टीम 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

आज तो जी लें



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चलिए आज एक नयी शुरुआत करें, बस आज शिकायत नहीं करेंगे जो होगा खुशी-खुशी स्वीकार. आखिर रो धोकर भी क्या मिलना है और जब कुछ मिलना नहीं तो रोना क्यों? एक सुहानी शाम रिमझिम बारिश अगर ऐसा हो तो कितना खुशनुमा है, लेकिन यदि कड़ी धूप उस पर बिजली गुम तो देखिये ये भी तो एक मजा है, ये जानना की प्रकृति के कितने रंग हैं, खुशी की बात है, गर्मी के मौसम में गर्मी है. अच्छी नौकरी हो तो क्या कहने, और मुफलिसी है तो भी भई जीना तो है ही और जब जीना है तो मर-मर के क्यों? ज़रा सोचों कल जब फिर काम मिलेगा कितना आनंद आयेगा, कुछ दिन आराम सही और सच में यही वक्त तो है अपने खुद को समय देने का. जो खोया है उसे पाने का. पैसा नहीं, साहिब ये बताइए इसे कौन लेकर आया था, कौन ले जाएगा? आज नहीं तो कल तो सही ये मैल मेरे हाथों पर भी लगेगा ही. अभी जितना है मैं तो खुश हूँ. आखों में पानी लेकर जीना क्या हुआ? इसे लाना ही है तो खुशी के लिए लाओ ना. खुशी कहाँ है, बता दूं, दूसरों के होठों पर हंसी ले आओ फिर देखो खुशी कहाँ से आती है. मेरा दर्द सिर्फ मेरे पास और दुनिया के दर्द में मेरा हिस्सा, बस एक दिन जी कर देख लो मजा ना आयें तो आपकी रूआंसी सूरत तो आपके पास होगी ही, जी लेना उसे लेकर. मैं तो भई चली बिंदास किसी और को शामिल करने "मेरी दस्तक" में. कामेंट देने के बजाय एक बार खिलखिला कर हंस देना. ये बेहतरीन कामेंट है इस पोस्ट पर.
(सुषमा पाण्डेय)अब आप लोग पढ़ सकते हैं, मेरे अन्य आलेख "इनसाईट स्टोरी" पर भी. यहाँ क्लिक कर पहुँचिये खुशी के संसार में.

बुधवार, 15 जून 2011

ये कट आफ: उफ़

सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय के तमाम प्रयासों के बीच भी छात्रों को कालेज में प्रवेश के लिए कोई राहत मिलती नजर नहीं आ रही है, कल दिल्ली के श्रीराम कालेज आफ कामर्स की कट आफ लिस्ट देखकर छात्रों के होश पाख्ता हो गए हैं इस साल जारी पहली कट आफ लिस्ट १०० फीसदी की है, कालेज के इस रवैये की चारों ओर भर्त्सना  हो रही है. कॉलेज की मंगलवार को जारी सूची के अनुसार, जिन छात्रों के पास 12वीं में बिजनेस स्टडीज, गणित, एकाउंटस और अर्थशास्त्र में से कोई विषय नहीं है तो उनके लिए बीकॉम में दाखिले के लिए सौ फीसदी कट ऑफ रखा गया है. साधारणतया इस सूची में विज्ञान के छात्र आते हैं. सिब्बल ने इस के लिए दिल्ली विश्विद्यालय के कुलपति को तो तलब किया ही साथ ही ये भी माना की देश में गुणवत्तापूर्ण कालेजों की कमी के चलते ये स्थिति पैदा हुयी है. इस प्रकार ९७-९८ फीसदी अंक लाने वाले छात्र भी प्रवेश से वंचित रह जायेंगे. सरकार को चाहिए की वह परीक्षा प्रणाली को सरल कर छात्रों को अधिक अंक लाने में सहायता करने के बजाय वास्तव में बुद्धिमान छात्रों को प्रोत्साहित करे. लेकिन सरकार केवल परीक्षा प्रणाली को सरल कर छात्रों को आकर्षित तो कर ले रही है लेकिन  इस तैयार भीड़ को खान समायोजित किया जाय इसके लिए कोई कदम उठा ही नहीं रही है. जब हमने छात्रों से इस बारे में बात की तो उनका कहना था की सब १०० प्रतिशत तो हो नहीं सकते हैं. अभी हाल के महीनों महीनों में रीलिज फिल्म फ़ालतू में विषय को काफी गहराई से दिखाया गया है. 
(इनसाईट स्टोरी कैम्पस टीम )

शनिवार, 11 जून 2011

उल्टा चलने वाला ग्रह

खगोल विदों के लिए एक नयी चुनौती खड़ी हुयी है, आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के खगोलविद डेनियल बेलिस की टीम ने चिली में दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीनों में से एक की मदद से डब्ल्यूएएसपी-17बी नाम के एक सुदूरवर्ती ग्रह का पता लगाया है, जो अपने तारे की विपरीत दिशा में चक्कर लगा रहा है। अभी तक ऐसा देखा गया है की किसी भी ग्रह का घूर्णन  पथ उसके तारे के अपने अक्ष में घूमने की दिशा में ही होता है, ग्रहों के बारे में ये मान्यता ही आम रही है लेकिन डब्ल्यू ए एस पी-१७ बी ने इस अवधारणा को गलत साबित कर दिया  है. सभी ग्रहों का निर्माण उसी घूर्णन सामग्री से होता है, जिससे तारे का निर्माण होता है, जिसका वह चक्कर लगा रहे होते हैं. डेनियल बेलिस के अनुसार अरबों वर्ष पहले किसी अन्य खगोलीय पिंड से टकराने के बाद इस ग्रह ने अपना पथ बदल दिया हो. अभी ना जाने और कितने रहस्य दफ़न हैं इस ब्रहमांड में. 
(ज्ञानपुंज टीम)  

शुक्रवार, 10 जून 2011

विदेश में पढ़ाई अब आसान

पढाई.. वो भी विदेश में क्या कहने?  आज कल युवाओं में विदेश में पढाई का क्रेज बढ़ा है, एजुकेशनल कंसल्टेंट की माने तो आजकल देश या विदेश कहीं भी पढ़ी का खर्चा लगभग बराबर आता है, इसी लिए मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग और हास्पिलिटी जैसे क्षेत्रों में विदेशों की ओर रुझान बढ़ा है. इसके लिए बाकायदा एजुकेशन लोन के साथ कंसल्टेंसी सभी कोर्सों की जानकारी के साथ एडमिसन और वीसा भी तैयार करवा देती है, इसके अलावा कुछ एजेंसी तो पार्ट टाइम जाब का भी इंतजाम करवा देती हैं. पहले महानगरों का ये शगल अब छोटे शहरों की ओर बढ़ रहा है, हायर स्टडी के लिए छोटे शहरों और गावों से भी छात्र जा रहे हैं. कहाँ क्या क्रेजी है देखिये? 


यूनाइटेड किंगडम और न्यूजीलैंड- मैनेजमेंट, हॉस्पिटेलिटी एंड टूरिज्म, लाइफसाइंस, इंजीनियरिंग, आईटी, हेल्थ, फॉर्मेसी। 
सिंगापुर- हॉस्पिटेलिटी, बिजनेस मैनेजमेंट, एनिमेशन, पर्सनल सर्विस केयर। 
केनेडा- इंजीनियरिंग,आईटी,मैनेजमेंट, लाइफसाइंस हॉस्पिटेलिटी। 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका- आईटी, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट,लाइफसाइंस, हॉस्पिटेलिटी। 
ऑस्ट्रेलिया- आईटी, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, लाइफसाइंस, हॉस्पिटेलिटी। 
इसके अलावा फ्रांस, यूरोपियन देशों, मलेशिया और दुबई में भी स्टूडेंट्स का रुझान है, जिनका नंबर स्टूडेंट्स की पसंद के मामले में इन 6 देशों के बाद आता है।
इस बारे मैं ज्यादा जानकारी के लिए मेल करें: mantraedu@hotmail.com  

(सुषमा पाण्डेय)

गायब हो रही है सोन चिरैया


दुनिया की सबसे वज़नदार पक्षियों में से एक सोन चिरैया की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर हैसोन चिरैया एक मीटर उंची होती है और इसका वज़न 15 किलोग्राम होता है. इंटरनेश्नल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर का कहना है कि अब केवल 250 सोन चिरैया ही बची हैं. इंटरनेश्नल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर यानि आईयूसीएन द्वारा जारी की गई पक्षियों की ‘रेड लिस्ट’ में कहा गया है कि लुप्त होने वाले पक्षियों की तादाद अब 1,253 हो गई है, जिसका मतलब है कि पक्षियों की सभी प्रजातियों में से 13 प्रतिशत के लुप्त हो जाने का ख़तरा है. 2011 के आईयूसीएन अंक में विश्व की पक्षियों की प्रजातियों की बदलती संभावनाओं और स्थिति का आकलन किया गया है. आईयूसीएन के वैश्विक प्रजाति योजना के उप निदेशक ज़ॉ क्रिस्टॉफ़ वाई ने कहा, “एक साल के अंतराल में पक्षियों की 13 प्रजातियां दुर्लभ वर्ग में शामिल हो गई हैं.” विश्व भर में पक्षियों की 189 प्रजातियों को गंभीर रूप से विलुप्त हो चुकी है, जिसमें सोन चिरैया भी शामिल है. सोन चिरैया को कभी भारत और पाकिस्तान की घासभूमि में पाया जाता था, लेकिन अब इसे केवल एकांत भरे क्षेत्रों में देखा जाता है. आख़िरी बार राजस्थान में इस अनोखे पक्षी का गढ़ माना गया था.
(सुषमा पाण्डेय)

अब खात्मा होगा एड्स का

अमरीका में वैज्ञानिक एचआईवी का नया इलाज विकसित कर रहे हैं, जिससे एड्स वायरस को पूरी तरह शरीर से समाप्त किया जा सकेगा. अभी एचआईवी का इलाज एंटी रेट्रोवायरल दवाएँ हैं. लेकिन ये दवा काफ़ी महंगी है और मरीज़ को ये दवाएँ आजीवन लेनी होती है. अब शोधकर्ता एचआईवी के स्थायी समाधान का रास्ता तलाश रहे हैं. पिछले 30 वर्षों में एचआईवी के इलाज की दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है. एंटी रेट्रोवायरल दवाओं से मरीज़ में ये वायरस उस स्तर तक दबाए जा सकते हैं, जहाँ से इनका पता तक नहीं लगाया जा सकता है. लेकिन समस्या ये है कि दवाएँ बंद करने की सूरत में ये वायरस फिर आ सकते हैं. अब शोधकर्ता इस वायरस को शरीर से पूरी तरह निकालने पर काम कर रहे हैं. कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जेरोम ज़ैक का कहना है कि अब इस पर काम किया जा रहा है कि इन वायरसों को उकसा कर इनके छिपने वाले स्थान से निकाला जाए और फिर इन्हें ख़त्म किया जाए. उन्होंने कहा कि अभी इस पर प्रयोग चल रहा है और दुनिया के कई प्रयोगशालाओं में इस पर काम चल रहा है. हालाँकि जानकारों का मानना है कि इस शोध में किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में वर्षों लग सकते हैं. लेकिन अगर ऐसा हो जाय तो एड्स की विभीषिका काफी कम हो जायेगी. 
(ज्ञानपुंज टीम)