बुधवार, 3 अगस्त 2011

आज तो जी लें



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चलिए आज एक नयी शुरुआत करें, बस आज शिकायत नहीं करेंगे जो होगा खुशी-खुशी स्वीकार. आखिर रो धोकर भी क्या मिलना है और जब कुछ मिलना नहीं तो रोना क्यों? एक सुहानी शाम रिमझिम बारिश अगर ऐसा हो तो कितना खुशनुमा है, लेकिन यदि कड़ी धूप उस पर बिजली गुम तो देखिये ये भी तो एक मजा है, ये जानना की प्रकृति के कितने रंग हैं, खुशी की बात है, गर्मी के मौसम में गर्मी है. अच्छी नौकरी हो तो क्या कहने, और मुफलिसी है तो भी भई जीना तो है ही और जब जीना है तो मर-मर के क्यों? ज़रा सोचों कल जब फिर काम मिलेगा कितना आनंद आयेगा, कुछ दिन आराम सही और सच में यही वक्त तो है अपने खुद को समय देने का. जो खोया है उसे पाने का. पैसा नहीं, साहिब ये बताइए इसे कौन लेकर आया था, कौन ले जाएगा? आज नहीं तो कल तो सही ये मैल मेरे हाथों पर भी लगेगा ही. अभी जितना है मैं तो खुश हूँ. आखों में पानी लेकर जीना क्या हुआ? इसे लाना ही है तो खुशी के लिए लाओ ना. खुशी कहाँ है, बता दूं, दूसरों के होठों पर हंसी ले आओ फिर देखो खुशी कहाँ से आती है. मेरा दर्द सिर्फ मेरे पास और दुनिया के दर्द में मेरा हिस्सा, बस एक दिन जी कर देख लो मजा ना आयें तो आपकी रूआंसी सूरत तो आपके पास होगी ही, जी लेना उसे लेकर. मैं तो भई चली बिंदास किसी और को शामिल करने "मेरी दस्तक" में. कामेंट देने के बजाय एक बार खिलखिला कर हंस देना. ये बेहतरीन कामेंट है इस पोस्ट पर.
(सुषमा पाण्डेय)अब आप लोग पढ़ सकते हैं, मेरे अन्य आलेख "इनसाईट स्टोरी" पर भी. यहाँ क्लिक कर पहुँचिये खुशी के संसार में.

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